एक बार कि बात है , एक दरबारी जो बीरबल को बिलकुल भी पसंद नहीं करता था ने दरबार में कहा कि ईश्वर ने मेरे साथ कल बहुत बुरा किया । मैं अपने घोड़े के लिए चारा काट रहा था तभी मेरी छोटी ऊँगली कट गई । अब आप ही बताइए बीरबल क्या यह मेरे साथ ईश्वर ने अच्छा किया ?
कुछ देर चुप रहने के बाद बीरबल बोले - मेरा अब भी यही मानना है कि ईश्वर जो भी करता है वह अच्छे के लिए करता है ।
बीरबल की बात सुनकर वह दरबारी और भी ज्यादा चिढ़ गया और कहा कि एक तो मेरी ऊँगली कट गई और बीरबल को इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। अन्य दरबारियों ने भी उसके सुर में सुर मिलाकर बीरबल को भला-बुरा कहा ।
तभी शहंशाह अकबर बोले मैं भी अल्लाह में पुरा भरोसा करता हूँ लेकिन बीरबल की इस बात से मैं भी सहमत नहीं हूँ । भला ऊँगली कटने में क्या भलाई छुपी होगी । शहंशाह अकबर की बात सुनकर सभी दरबारी मन ही मन खुश होने लगे कि बीरबल की आज शहंशाह के सामने बेइज्जती हो गई ।
इस बात को तीन महीने बीत गए । एक दिन वह दरबारी जिसकी ऊँगली कटी थी वह शिकार खेलने जंगल गया और
एक शिकार के पीछे-पीछे भागते हुए घने जंगल में जा पहुंचा । उसे आदिवासियों ने अपने कबीले में आते देखा तो पकड़ लिया और नरबलि के लिए कैद करके रखा । वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए नरबलि देते थे । बलि का समय हुआ तो वे उस दरबारी को बांधकर अपने देवता के पास ले गए । जब पुजारी ने दरबारी का निरिक्षण किया तो देखा कि उसकी एक ऊँगली कटी हुई है । उसने क़बीलेवालों से कहा कि अगर इस नौ ऊँगली वाले इंसान को अगर उन्होंने अपने देवता को बलि दे दिया तो वे प्रसन्न होने की बजाय क्रोधित हो जाएंगे और हमें इसका फल सुखे , बाढ़ या महामारी का प्रकोप झेलना पडेगा । इसलिए इसकी बलि नहीं दी जा सकती हैं ।
उन आदिवासियों ने दरबारी को रिहा कर दिया ।
अगले दिन वह दरबारी बीरबल के पास पहुंचा और अपनी गलती मानी ।
जब शहंशाह अकबर को इस बात का पता चला तो उन्हें गर्व हुआ कि बीरबल जैसा बुद्धिमान व्यक्ति उसके दरबार की शोभा बढ़ा रहे हैं । शहंशाह अकबर ने एक बार फिर खुश होकर बीरबल को बहुत सारा इनाम दिया । अकबर के नजरों में बीरबल की इज्जत और बढ़ गई ।
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