कुछ दुर जाने पर उन्हें एक तिराहा नजर आया । शहंशाह अकबर बहुत खुश हुई कि चलो अब किसी रास्ते से अपनी राजधानी तो पहुंच ही जाऐंगे । अकबर उलझन में था कि जाएं तो जाएं किस ओर ? वे सब सोच रहे थे पर कुछ समझ न आएं । तभी उन्होंने देखा कि एक लड़का किनारे खड़ा उन्हें घूर रहा है । सैनिकों ने उसे पकड़कर अकबर के सामने पेश किया ।
अकबर ने कड़कती आवाज़ में पूछा - ऐ लड़के , कौन सी सड़क आगरा को जाती है ? लड़का मुस्कुराते हुए बोला- जनाब यह सड़क चल नहीं सकतीं तो आगरा कैसे जाएगी । महाराज जाना तो आपकों ही पडेगा और इतना कहकर वह लड़का खिलखिला कर हंसने लगा ।
सभी सैनिक मौन खड़े लड़के को देख रहे थे , वे शहंशाह के गुस्से से वाकिफ थे । लड़का फिर बोला - जनाब , लोग चलते हैं रास्ते नही ।
'तुम ठीक कह रहे हो , तम्हारा नाम क्या है ? ' शहंशाह अकबर ने पूछा ।
'मेरा नाम महेश दास है महाराज और आप कौन हैं ?' लडके ने जवाब दिया ।
शहंशाह अकबर ने लड़के को अपनी अंगूठी निकालकर देते हुए कहा - तुम हिन्दुस्तान के शहंशाह अकबर से बात कर रहे हो । मुझे निडर लोग पसंद है । तुम मेरे दरबार में आना और मुझे यह अंगूठी दिखाना । यह अंगूठी देखकर मैं तुम्हें पहचान लूंगा । अब तुम मुझे बताओं कि किस रास्ते पर चलूँ कि आगरा पहुंच जाऊं ।
महेश दास ने आगरा का रास्ता दिखाया और जाते हुए शहंशाह को देखता रहा ।
इस प्रकार अकबर भविष्य के बीरबल से मिलें ।
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