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अकबर बीरबल के किस्से - मूर्खों की फेरहिस्त

           
AKBAR AND BIRBAL
AKBAR AND BIRBAL STORIES IN HINDI

शहंशाह अकबर घुड़सवारी के इतने शौकीन थे कि पसंद आने पर घोड़ो का मुंहमांगा दाम देने के लिए तैयार रहते थे। दूर दराज के मुल्कों, जैसे अरब , पर्शिया आदि से घोड़ो के विक्रेता मजबूत और आकर्षक घोड़े अकबर के दरबार में लाया करते थे । शहंशाह अपने व्यक्तित्व उपयोग के लिए गए घोड़े की अच्छी कीमत दिया करते थे। जो घोड़े शहंशाह की रूचि के नहीं होते उन्हें सेना के लिए खरीद लिया जाता था । 


एक दिन घोड़ो का एक नया विक्रेता अकबर के दरबार में आया । अन्य व्यापारी भी उसे नहीं जानते थे । उसने दो बेहद आकर्षक घोड़े शहंशाह को बेचे और शहंशाह अकबर से कहा कि वह ऐसे सौ घोड़े लाकर दे सकता है बशर्ते कि उसे आधी रकम पेशगी के रूप में पहले ही दे दी जाए । 

अकबर को घोड़े बहुत पसंद आए थे इसलिए उन्होंने वैसे ही सौ घोड़े लेने का तुरंत मन बना लिया। 

शहंशाह अकबर ने अपने खजांची को बुलाकर उसे व्यापारी को पेशगी देने का आदेश दिया । खजांची उस व्यापारी को लेकर खजाने की ओर चल दिया।  दरबार में किसी को भी शहंशाह अकबर की यह बात अच्छी नहीं लगी कि शहंशाह एक अनजान व्यापारी को इतनी बड़ी रकम पेशगी के रूप में दे परंतु बोलने की हिम्मत किसी में न थी । 


सभी चाहते थे कि बीरबल इस बात का विरोध शहंशाह से करें । बीरबल को भी यह सौदा कुछ जंचा नहीं था।  बीरबल शहंशाह अकबर से बोले - हुजूर , कल आपने मुझे शहर भर के मूर्खों की सूची बनाने के लिए कहा था । मुझे खेद है कि उसमें आपका नाम सबसे ऊपर है। 


शहंशाह अकबर बीरबल की बात सुनकर गुस्से से लाल हो गए । उन्हें लगा कि बीरबल ने उनका भरे दरबार में विदेशी मेहमानों के सामने अपमान कर दिया है । 


गुस्से से लाल शहंशाह अकबर चिल्लाया - तुम्हारी ज़ुर्रत कैसे हुई हमें मूर्ख बताने की ?


"माफ करे हुजूर ! आप चाहे मेरा सर कलम करवा दे , यदि आपके कहे मूर्खों की फेरहिस्त में आपका नाम सबसे ऊपर रखना आपको गलत लगें " बीरबल सर झुका कर बोले ।


दरबार में ऐसा भयानक सन्नाटा छाया कि अगर कोई सुई भी गिरे तो पता चला जाए । अब शहंशाह अकबर अपना हाथ बीरबल की ओर उठाएं आगे बढ़े । दरबार में मौजूद सभी लोगों की सांसे थम गई । उन्हें लगा कि शहंशाह अकबर बीरबल का सर धड़ से अलग करवा देंगे । लेकिन शहंशाह ने अपना हाथ बीरबल के कंधे पर रख दिया । वह कारण जानना चाहते थे  । बीरबल यह बात समझ गए। वह बोला - "आपने घोड़ो के व्यापारी को इतनी मोटी रकम पेशगी के रूप में दी , जिसका अता पता भी कोई नहीं जानता है ।  वह आपकों धोखा भी दे सकता है । इसलिए मूर्खों की फेरहिस्त में आपका नाम सबसे ऊपर है । ऐसा हो सकता है कि वह व्यापारी फिर लौटकर आएं ही नही । वह किसी अन्य देश जाकर बस जाएं जहां आप उसे ढूंढ ही न पाएं । किसी से सौदा करने से पहले उसकी पूरी जानकारी तो होनी ही चाहिए । उसने दो अच्छे घोड़े क्या आपको दे दिए कि आप इतना मोहित हो गए और इतनी बड़ी रकम बिना सोचे - समझे उसे दे दी । यही कारण है कि मैंने आपको मूर्खों की फेरहिस्त में सबसे ऊपर आपका नाम रखा "।


"तुरंत दौड़ कर जाओं और खजांची से बोलकर व्यापारी की रकम अदायगी रुकवा दो " शहंशाह अकबर ने एक नौकर को दौडाया ।


बीरबल बोला - अब आपका नाम उस फेरहिस्त में नही रहेगा ।


शहंशाह अकबर कुछ देर बीरबल को घूरते रहे फिर दरबारियों की ओर देखकर ठहाका मारकर हंसने लगें । सभी ने राहत की सांस ली और एक स्वर में बीरबल की चतुराई की प्रशंसा की ।


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