वेताल पच्चीसी की पहली कहानी / Vikram Betal stories in hindi
उसके जाने के बाद राजकुमार अपने मित्र के पास निराश होकर लौटा और सब हाल सुनाकर बोला - मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता हूँ। लेकिन मुझे तो न उसका नाम मालूम है और न ठिकाना । वह कैसे मिलेगी ?
दीवान के लड़के ने कहा - राजकुमार आप निराश न हों । वह सब कुछ बता गई है ।
राजकुमार ने पूछा - कैसे ?
दीवान का लड़का बोला - उसने कमल के फूल को अपने जुड़े से उतार कर अपने कानों से लगाया इसका मतलब उसने बताया कि वह कर्नाटक की रहने वाली है । दांत से कुतरा तो बताया कि मैं दंतबाट राजा की पुत्री हूँ । पांव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और छाती से लगाकर बताया कि तुम मेरे दिल में बस गए हो ।
इतना सुनना था कि राजकुमार खुशी से नाच उठा ।
राजकुमार बोला - अब मुझे कर्नाटक देश ले चलो ।
दोनों मित्र वहां से चल दिए । घूमते-फिरते , सैर करते दोनों कर्नाटक पहुंचे । राजा के महल के पास पहुंचे तो एक बुढ़िया उन्हें अपने द्वार पर चरखा कातती मिली।
उसके पास दोनों मित्र पहुंचे और बोले - माई , हम सौदागर हैं । हमारा सामान पीछे-पीछे आ रहा है। हमें रहने के लिए थोड़ी जगह दें दो।
उनकी शक्ल-सूरत देखकर और बात सुनकर बुढ़िया के मन में उनके लिए ममता उमड़ आई । वह बोली - बेटा , तुम्हारा ही घर हैं जब तक जी में आए रहो ।
इस तरह दोनों दोस्त वहीं ठहर गए।
दीवान के लड़के ने बुढ़िया से पूछा - माई , तुम क्या करती हो ? तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं ? तुम्हारी गुजर कैसे होती है ?
बुढ़िया ने जवाब दिया - बेटा , मेरा एक बेटा है जो राजा की चाकरी में हैं। मैं राजा की पुत्री पद्मावती की धाय थी । बूढ़ी हो जाने से अब घर में रहतीं हूँ । राजा खाने-पीने को दे देता है। दिन में एक बार राजकुमारी से मिलने महल में जाती हूँ ।
राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा - माई , कल तुम वहां जाओं तो राजकुमारी से कह देना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें जो तालाब में राजकुमार मिला था वह आ गया है ।
अगले दिन जब बुढ़िया महल गई तो उसने राजकुमार का संदेशा राजकुमारी पद्मावती तक पहुंचा दिया । सुनते ही राजकुमारी ने गुस्सा होकर हाथों में चंदन लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा - 'मेरे घर से निकल जा' ।
बुढ़िया ने घर आकर सारा हाल राजकुमार को कह सुनाया । राजकुमार हक्का-बक्का रह गया ।
तब उसके मित्र ने कहा कि - राजकुमार आप घबराएं नहीं, उसकी बातों को समझें । उसने दसों ऊंगलियां सफेद चंदन में मारी , इसका मतलब है कि अभी दस रोज चांदनी के बाकी है । उनके बीतने पर में अंधेरी रात में मिलूंगी ।
दस दिन बाद फिर बुढ़िया ने खबर दी तो उसने केसर के रंग में तीन ऊंगलियां भिगाकर मारी और कहा - भाग यहां से ।
बुढ़िया ने आकर सारी बात राजकुमार को बताई । राजकुमार शोक से व्याकुल हो उठा ।
दीवान के लड़के ने राजकुमार को समझाया कि इसमें शोक करने वाली क्या बात है । उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है । तीन दिन ओर रुको ।
तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर से राजकुमारी के पास पहुंची । इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर पश्चिम की खिड़की से बाहर निकाल दिया । उसने आकर राजकुमार को बताया ।
यह सुनकर दीवान के लड़के ने राजकुमार को बताया कि मित्र उसने आपको उसी खिड़की की राह से बुलवाया हैं।
मारे खुशी से राजकुमार नाच उठा । समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी , इत्र लगाया हथियार बाँधा और निकल पड़ा । दो पहर रात बीतने पर वह महल में जा पहुंचा और खिडकी के रास्ते राजकुमारी के कक्ष में जा पहुंचा । राजकुमारी वहां तैयार खड़ी थी । वह राजकुमार को अंदर ले गई ।
अंदर का हाल देखकर राजकुमार की आँखे खुली की खुली रह गई । एक से एक बढ़कर चीजें थी । रात-भर राजकुमार और राजकुमारी साथ रहे । जैसे ही दिन निकलने को आया कि राजकुमारी ने राजकुमार को छुपा दिया और रात होने पर फिर बाहर निकाल लिया । इस तरह कई दिन बीत गया । अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आने लगी । उसे चिन्ता हुई कि न जाने उसका मित्र किस हाल में होगा । उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो राजकुमार ने उसे अपने मित्र के बारे में बताया और कहा कि मेरा मित्र बहुत होशियार है उसी के कारण तुम मुझे मिल पाई हो ।
राजकुमारी ने कहा - मैं उसके लिए बढ़िया - बढ़िया भोजन बनवाती हूँ। तुम उसे खिलाकर तसल्ली देकर लौट आना ।
खाना साथ में लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास गया । वे महीने भर से नहीं मिले थे । राजकुमार ने अपने मित्र को सारा हाल कह सुनाया कि मैंने राजकुमारी को तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दी हैं , तभी तो उसने यह भोजन बनाकर भेजा है ।
दीवान का लड़का सोच में पड़ गया ।
उसने कहा - यह तुमने अच्छा नहीं किया मित्र । राजकुमारी समझ गई है कि जब तक मैं हूँ वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकतीं हैं । इसलिए उसने इस खाने में जहर मिला कर भेजा है , मुझे मारने के लिए ।
यह कहकर उसने थाली में से एक लड्डु उठाकर कुत्ते को दे दिया । खाते ही कुत्ता मर गया ।
राजकुमार को बड़ा बुरा लगा ।
उसने कहा - ऐसी स्त्री से भगवान बचाएँ । मैं अब उसके पास नहीं जाऊंगा ।
दीवान का बेटा बोला - नहीं अब हमें ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे हम उसे अपने राज्य ले जा सकें । आज रात को तुम वहां जाओं । जब राजकुमारी सो जाएं तो उसके बाएं जांघ में त्रिशूल बना कर उसके सारे गहने लेकर चले आना।
राजकुमार ने ऐसा ही किया । उसके आने के बाद दीवान का बेटा उसे साथ ले , योगी का भेस बना, मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा कि तुम जाकर राजकुमारी के गहने बाजार में बेच आओं । कोई पकड़े तो उसे कहना कि ऐ गहने मेरे गुरु ने दिए हैं और उसे मेरे पास ले आना ।
राजकुमार गहने को लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को उसे दिखाया । गहने देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया । कोतवाल ने पूछा तो राजकुमार ने कह दिया कि यह गहने मुझे मेरे गुरु ने दिए हैं । गुरु को भी पकडवा लिया गया । सभी को राजा के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
राजा ने पूछा - योगी महाराज यह गहने आपको कहाँ से मिले ?
योगी बने दीवान के लड़के ने कहा - महाराज, मैं मसान में काली चौदस को डाकिनी मंत्र सिद्ध कर रहा था कि डाकिनी आयी । मैंने उसके गहने उतार लिए और उसकी बायीं जंघा पर त्रिशूल का निशान बना दिया ।
इतना सुनकर राजा महल में गया और रानी से कहा पद्मावती की बायीं जंघा पर देखों तो त्रिशूल का निशान तो नहीं बना है। रानी ने देखा तो था । राजा को बड़ा दुख हुआ । बाहर आकर राजा योगी को एक ओर ले जाकर बोला - महाराज धर्मशास्त्रों में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दण्ड हैं ?
योगी ने जवाब दिया - राजन् , ब्राह्मण , गऊ , स्त्री , लड़का और अपने आसरे में रहने वाला कोई खोटा काम करे तो उसे देश निकाला दे देना चाहिए ।
यह सुनकर राजा ने पद्मावती को डोली में बिठाकर जंगल में छुड़वा दिया । राजकुमार और दीवान का बेटा तो ताक में बैठे ही थे । राजकुमारी को अकेले पाकर साथ ले अपने नगर लौट गए और खुशी से आनंद में रहने लगें ।
कहानी सुनाकर बेताल बोला - राजन् , बताओं पाप किसको लगा ?
राजा विक्रमादित्य ने कहा - पाप तो राजा को लगा जिसने बिना विचारे अपनी पुत्री को देश-निकाला दे दिया । दीवान के लड़के ने तो अपने स्वामी का मनोरथ पूरा करने में उसकी मदद की ।
विक्रम का इतना कहना था कि वेताल फिर उसी पेड़ में जा लटका । राजा ने फिर वेताल को उतारा और चल दिया ।
वेताल बोला - राजन् , सुनों मैं एक कहानी ओर सुनाता हूँ ।
विक्रम वेताल की अगली कहानी आगे की पोस्ट में पढ़े .
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